सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति
सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति
सनातन धर्म एकमात्र धर्म है, जो संपूर्ण विश्व सृष्टि में समाया हुआ है | समय , परिस्थिति और स्थान के अनुसार उसके जिस अंश को जिस कबीले या समुदाय ने महत्व दिया वही उसका संप्रदाय या पंत बन गया |
ईश्वर एक है , इस धारणा को सभी मानते हैं | जो नास्तिक कहते हैं कि हम ईश्वर को नहीं मानते | उनके नकार में भी ईश्वर का अस्तित्व तो विद्यमान है ही | अतः सृष्टि संचालनकर्ता कोई अज्ञात शक्ति तो है ही जिसके रहने से सभी जीव सक्रिय है|
सनातन धर्म उस ईश्वर की प्रार्थना में कहता है की ' निराकार- साकार तू सब में एक समान, पंचतत्व और प्रकृति सब तेरा रूप महान'| इसी आधार पर कोई निराकार को मानने लगा ,कोई अग्नि की पूजा करने लगा, कोई वृक्षों की पूजा करने लगा, कोई नदियों को पूजने लगा और कोई किसी रूप - आकार की मूर्तियों को पूजने लगा|
मान्यता और पूजा पद्धति के अनुसार दुनिया में अनेक संप्रदाय बन गये , उनमें भी छोटे-छोटे मन्तातरो से उप संप्रदाय , पंथ और उप पंत बन गये | आज यह सभी अपने आप को एक प्रथक धर्म बतलाने लगे, जो कि हास्यास्पद है|
धर्म का हनन करने से धर्म मारता है और धर्म की रक्षा करने से वह रक्षा करता है| धर्म ही साथी है, जो मरने पर भी पीछे-पीछे चलता है | मनुष्य सब जगह मनुष्य है, उसकी जाति रंग रूप आदि भिन्न-भिन्न हो पर भी उसकी प्रकृति संसार भर में एक सी है| आहार, निद्रा, भय ,मिथुन आदि की प्रवृत्ति थोड़ी- बहुत सभी में पाई जाती है| सुख- दुख हर्ष - शोक से सभी प्रभावित होते हैं | अपने शरीर की रक्षा करना अपने वंश की वृद्धि करना सभी चाहते हैं | सुख की खोज सभी को होती है| इसी मानवता को ऊंचा उठाने में भारतीय संस्कृति का विशेष योगदान है जिसे हम हिंदू संस्कृति कह सकते हैं आज तो लोग इसे भी हिंदू धर्म कह रहे हैं |
वेद और शास्त्रों में हिंदू संस्कृति का विज्ञान है आधार पर सनातन धर्म को 16 प्रधान अंगों में विभक्त किया गया है यही हिंदू संस्कृति के मूल आधार है
(1) धर्म अनुकूल शारीरिक व्यापार रूपी सदाचार (2) आत्मा की ओर ले जाने वाले सद्विचार (3) वर्ण धर्म का पालन करना (4) नारियों का सतीत्व धर्म पालन (5) आश्रम धर्म का पालन (6) दैव -जगत पर विश्वास (7 ) ईश्वरी अवतारों की पूजा अर्चना करना (8 ) योग और भक्ति मूलक उपासना पद्धति का पालन ध्यान मूलक मंत्री योग ज्योति ध्यान मूलक हठयोग बिंदु ध्यान मूलक का प्रयोग और निपुण ध्यान मूलम राज योग (9)मूर्ति आदि स्थापना करके सर्व व्यापक भगवान की उपासना करना (10)सुधा सुधा विवेक और स्पर्शा स्पर्श विवेक (11) यज्ञ महायज्ञ पर विश्वास (12) वेदों और वेद सम्मत स्मृति पुराणों तंत्र आदि शास्त्रों में तीर विश्वास रखना (13) कर्म तथा कर्म का बीज संस्कार और उसकी क्रिया प्रतिक्रिया पर पूर्ण विश्वास (14) पूर्व जन्म पर पूर्ण विस्वास (15) शास्त्रों में वर्णित उपासना पद्धति को मानना (16) जीव की कैवल्य प्राप्तिधर्म |
धर्म भी प्रचार की वस्तु है, यह हिंदू समाज ने स्वीकार नहीं किया | धर्म तो अधिकार के अनुसार प्राप्त करके आचरण करने की वस्तु है हिंदू संस्कृति की यही विशेषता है कि उसने स्वार्थ- सिद्धि की अपेक्षा परमार्थ व समाज सेवा पर अधिक जोर दिया है| वह प्रार्थना करता है कि सब प्राणियों के हृदय में निवास करने वाले हे परमात्मा हमें वह परस्पर स्नेह, वह सदिच्छा और साधन दो, जिसने हम सब वैसे ही एक हो , जैसे सूर्य किरणें एक होती हैं और सब का समान हित साधन करें जैसे वायु और मेघ करते हैं|
भारतीय संस्कृति का मुख्य गुण विषमता, प्रतिस्पर्धा और अशांति को दूर कर समता , समानता और शांति का साम्राज्य स्थापित करना है| यही इसका गौरव और उपयोगिता है| सनातन संस्कृति अन्य सभी सभ्यताओं से श्रेष्ठ है तथा अनादि और अनंत है| दूसरी संस्कृतिया सनातन संस्कृति का अंश लेकर ही जीवित है|
धर्म प्राणी को ह्रास से विकास की तथा असत्य से सत्य की समिति से असमिति की, जड़ता से चेतन की और मृत्यु से अमृत्व की ओर ले जाता है | धर्म अपने कर्तव्य से दूसरों के अधिकारों की सुरक्षा करने की प्रेरणा करता है| भिन्न -भिन्न साधन करते हुए एक ही साध्य प्राप्त कराने में धर्म समर्थ है| साधन भेद होने पर भी प्रीति भेद तथा लक्ष्य भेद नहीं होता यही सनातन धर्म की महत्ता है | अतः सभी विश्व मानव को अपने मतानुकूल आत्म चेतना का उद्योग करना चाहिए और सभी भारतीयों को भारत की संस्कृति की रक्षा के लिए प्रयत्न करना चाहिए|
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